बस अब बहुत हुआ

बस अब बहुत हुआ 

बहुत हुआ काव्य का आखेट,
आओ इस बार नज़्म कोई गाते हैं,
तराने की सरगम को याद न करके,
कुछ पुराने लफ्ज़ो से ग़ज़ल बनाते हैं,

बहुत हुई मोहब्बत की बातें,
आओ अब कुछ यारी निभाते हैं,
लम्हों के मरहम को याद ना करके,
कुछ पुराने दोस्तों को साथ बुलाते हैं,

बहुत हुए किस्से अब पुराने,
आओ चेतना अब नयी बनाते हैं,
गीले-शिक़वे को याद ना करके,
इस बार किसी नयी जगह जाते है,

बहुत पहन ली ये समाज की बेड़िया,
आओ हटकर कदम कोई उठाते हैं,
रूढ़िवादियों को याद न करके,
नियम कुछ नए हम बनाते हैं,

बहुत हुई आलेखों की रचना,
आओ भाषण का प्रतिपाद अब कराते है,
खोखले हुए अगुआ को याद ना करके,
अब हम खुद ही को राजा बनाते हैं,

कब तक बंधे रहोगे रोज़मर्रा की जंजीरों में,
आओ कश्मकश को अब अपनी मिटाते हैं,
रंजिशों को अब याद ना करके,
सबको मिलकर हम गले लगते हैं।

↝ रचित कुमार अग्रवाल

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