माँ-पिता
ना मानु मैं कोई ईष्ट, ना माना है गुरु कोई मैने,
पैरों को मैने अपने माँ-पिता के, मान लिया है सब कुछ
संसार नही इस धरती पर कही ऐसा, जैसा पा लिया है मैने,
फैसलों को मैने अपने माँ-पिता के, मान लिया है सब कुछ
मन्दिर ना मानु, धर्म ना मानु, छोड़ दिया है सर झुकाना मैने,
जब से संभाला हैं होश मैने, दिया तुमने है अपना सब कुछ
रस्में ना देखू, पर्व ना जानू, जब देख लिया है इनमें मैने,
गलत कहाँ हूँ मैं अगर सिर्फ तुम्हें पूजूँ, जब तुम्हे मान लिया सब कुछ
शीश मेरा है नतमस्तक, तुमपे वार दू मैं अपना सारा जीवन
जो दिया है सब आपने, ये सब आपको ही अर्पण
ना मानु मैं कोई ईष्ट, ना माना है गुरु कोई मैने,
पैरों को मैने अपने माँ-पिता के, मान लिया है सब कुछ............
↝ रचित कुमार अग्रवाल
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