मैं पानी सा
मैं बहता पानी नदी का,
जिस और तू ले चल,
बह निकुलंगा हर मोड़ पे,
ढूंढूंगा तुझे हर छोर पे.……
मैं गिरता पानी झरने का,
जिस दरिया में बोल समा जाऊँगा,
आसमां से धरती को छूना आदत है मेरी,
चोट नही लगती अब आदतों से तेरी........
मैं गन्दा पानी नाले का,
जिस शहर में बोल दफ़न मिलूँगा,
लोगों की गन्दगी पीना इबादत है मेरी,
दिलों को साफ़ करना शहादत है मेरी,
मैं गहरा पानी बाँध का,
जिस जगह बोल रुक जाऊँगा,
सदियों से खड़ा हू रुक जाऊँगा,
तू बोल तो तेरे आगे भी झुक जाऊँगा........
मैं सिमटा पानी बर्तन का,
हर रंग रूप में ढल जाऊँगा,
अक्स लोगो के अकसर दिखलाता हुँ,
तू चेहरा अपना देखे तो आईना में तेरे तब्दील हो जाऊ.........
मैं बरसता पानी बारिश का,
बोल किस जगह की प्यास बुझानी है,
बादल से धरती आने के बीच इन्द्रधनुष सी मेरी कहानी है,
हथेली में आके तेरी रंग देना तुझे, मेरी जिंदगानी है.……
मैं अनन्त पानी सागर का,
चाहू तो मैं सब कुछ मिटा दूंगा,
अलग दुनिया बस्ती मेरे अंदर पर बाहर वालो को मैने नाकारा नहीं,
ले लू तुझे आगोश में अपने की बस अब जैसे कोई किनारा नहीं।
↝ रचित कुमार अग्रवाल
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