तू.....

जितना पास चाहू तुझे तू उतनी ही धुंदली नज़र आती है,
आँखों में बसी तो है पर बस ख्वाब की तरह आती है,
रोकता भी हूँ तो शाम को ढलने से,
पर तू कभी न जान पाती है,
रात के अँधेरे से उजाले तक बस तू नज़र क्यों आती है,
वक़्त सहमा है मेरी मौत के बुलावे के डर से,
अगर तू ये जान जाती है,
तो जीत लेंगे खुदा से खुद को भी,
अगर तू जो साथ आती है,
आग लगने की देर होती है बस,
रूह जिस्म से युही चली जाती है,
नाव के डूबने से क्या कभी नदिया सो जाती है ?

-रचित कुमार अग्रवाल

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