तुम और मेरे कुछ सवाल
तुम और मेरे कुछ सवाल
माना, जिंदगी से अनजान हूँ मैं,
क्या वो तुम मुझे बताओगे ?
पर हाँ, जीने के तरीकों से वाकिफ़ हूँ,
क्या तुम मुझे जीने की बस एक वजह दोगे?
माना, प्यार की बातों से थोड़ा दूर हूँ मैं,
तो क्या, तुम मुझे ऐसे ही अपना लेना,
पर हाँ, दोस्ती बहुत अच्छी निभाता हूँ,
तो तुम पहले मुझे दोस्त बना लेना,
माना, रिश्तों की समझ कम रखता हूँ मैं,
वो तो तुम मुझे समझा ही दोगे ना ?
पर हाँ, लोगो की परख करता हूँ,
लेकिन तुम मेरा आईना बनोगे ना ?
माना, मन से बहुत उलझा हूँ मैं,
तुम मुझे सुलझाओगे क्या....?
और हाँ, दिल से कठिन भी हूँ,
तुम अपनी सरलता से मझे बदलना चाहोगे क्या....?
मान लिया, थोड़ा स्वाभिमानी हूँ मैं,
क्या ? तुम मेरा अभिमान बन पाओगे ?
हाँ मान लिया शरारते भी करता हूँ,
तुम इन्हें साथ मेरे दोहराओगे क्या....?
मैं रुकना अभी तक जान न पाया हूँ,
तुम मेरा ठहराव बनोगे क्या....?
मैं जो आज इतना सब कह गया हूँ,
क्या....? तुम मुझे समझ तो रहे हो,
बस आखिरी बात पूछना चाहता हूँ मैं,
दुनिया में बहुत से अनजाने चेहरे मिलते हैं,
उन सब के बीच मझे पहचान पाओगे क्या....?
↝ रचित कुमार अग्रवाल
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