अभी वक़्त बाकी हैं
रात तो अभी जवान हुई हैं,
अँधेरे कि कमाई अभी बढ़ने लगी हैं,
सुबह की अठखेलियों में थोड़ा समय लगेगा,
चिड़ियों के गीत में अभी वक़्त बाकी हैं,
साँझ की नमी तो अभी भी बाकी हैं ,
सवेरे की धुंध में अभी राज़ काफ़ी हैं,
लिख लेता हूँ मैं अब भी कभी-कभी,
पर किसी से इज़हार में अभी वक़्त बाकी हैं ....
कश्मकश में है जैसे वजूद शाम का,
चाँदनी भी जैसे ख़िल-ख़िलायी हैं,
किरणों में तो अभी थोड़ा समय लगेगा,
ओस की बूँदो में अभी वक़्त बाकी हैं,
ये सब जैसे परवानों की चालाकी हैं,
रात में होती बातों में अभी राज़ काफ़ी हैं,
लिख लेता हूँ मैं अब भी कभी-कभी,
पर किसी के इंतज़ार में अभी वक़्त बाकी हैं ....
↝ रचित कुमार अग्रवाल
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