ये मौसम आज.......

कुछ साजिशें  सी कर रहा हैं ये मौसम आज ,
इठला रहा हैं , अकड़ रहा हैं....
शैतानियों से अपनी बता रहा हैं.....
अनसुना सा कुछ जैसे कह रहा हैं ये मौसम आज


तरसा रहा था , तड़पा रहा था.....
वृक्षों को जैसे डंठलों में बदल रहा था 
आज फिर हुआ हैं इसका मन कुछ नया......
देखो कैसी करवटें ले रहा हैं फिर ये मौसम आज,


बहुत दिनों के बाद,
सूरज है ढला ढला सा, बादल है घना घना सा,
शुष्क हैं कुछ , तो कुछ खुश्क ,
बरसने की बात हैं कुछ , जी में इसके भी कालापन है 
बादलों की नीयत से देखो बदल रहा हैं फिर ये मौसम आज ,


शिथिल थी धरती , सुनी सी नदियाँ ,
बंजर जैसे मानस पटल कि लकीरों की रचना ,
शांत सी हवाए , खो गए अंधियाव ,
अब तो जरा ठंडक आयी हैं ,
कुछ बूँदे पत्तों पे दिखलायी हैं ........
वर्षा की आहट से अंगड़ाई ले रहा फिर ये मौसम आज ,


मिट्टी की पहली खुशबू अब आने लगी हैं ,
चिड़िया भी कुछ गीत गुनगुनाने लगी हैं,
किसी घने जंगल में मोर की थिरकने की आवाज़ आने लगी हैं ,
अब बारिश आने लगी हैं , पहली बारिश अब आने लगी हैं 
रंगो की छटा बस अब छाने लगी हैं 
इंद्रधनुषी आकार में आने लगी हैं ,
खिल खिला उठा हैं फ़िर से ये मौसम आज़। 


↝ रचित कुमार अग्रवाल 

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